कौन किसको जन्म देता है…
(लेख pasand.wordpress.com से साभार लिया गया है।)
धर्म के लिए न जाने कितने लोग आपस में लड़ते रहते हैं और न जाने कितने अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ कहते रहते हैं, परंतु न तो कोई धर्म श्रेष्ठ है न कोई छोटा होता है। सभी में जीवन संचालन की आचार संहिता ही बतायी गयी हैं, कारण यह है कि धर्म जीवन के लिए है।
श्रीमद्भागवत पुराण में अधर्म के विषय में हमारे व्यवहार और आचरणगत बातों को बहुत ही कलात्मक रुप में और मानवीय चरित्र सदृश प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत है - अधर्म/बुराई कैसे और किस रुप में जन्म लेती है।
अधर्म वंश क्रम
ब्रह्मा का बेटा अधर्म, अर्थात सृष्टि के साथ ही अच्छाई और बुराई आयी है।
अधर्म की पत्नी मृषा (झूठ)। अर्थात अधर्म और झूठ एक दूसरे के पर्याय हैं।
इन से दंभ और माया ( धोखाधड़ी) पैदा हुए जिन्हें र्निऋति ( कल्याणविहीन/रीतिविहीनता/मार्गरहित/स्पर्धविहीनता) ले गयी।
दंभ और माया से लोभ और निकृति (शठता/ धूर्तता) पैदा हुए।
लोभ और निकृति से क्रोध और हिंसा।
क्रोध और हिंसा से कलि ( कलह) और दुरुक्ति (गाली) जन्मे।
कलह और गाली से मृत्यु-भय आए।
भय और मृत्यु से यातना और निरय ( नरक) पैदा हुए। यह सब ही प्रलय अर्थात नाश का कारण स्वरुप हैं।
कौन सी बुराई किस दुर्गुण को जन्म देती है यही इस अधर्मवंश का भावार्थ है।
शुरु से ही बुराई को पोषक मिलता रहता है तो वह वृद्धि करके विनाश का कारण बन जाती है। यूं तो बुराई अच्छाई के साथ होती है क्योंकि बिना उसके अच्छाई भी नहीं होगी। यही तो आज का विज्ञान और मनोविज्ञान है। हर नकारात्मकता में सकारात्मकता छिपी हुई है। प्रकृति का एक नियम तोड़ने पर अधर्म की कई पीढ़ियों की दासता सहनी पड़ती है। इसलिए धर्म की व्याख्याओं का गहनार्थ ग्रहण करके जीवन में पालन करना चाहिए। ये बातें किसी रुप में भी संकीर्ण नहीं कही जा सकती है। हमे सभी धर्मों का मर्म समझना चाहिए। फिर हमें कोई धर्म पृथक नज़र नहीं आएगा।
श्रीमद्भागवत पुराण में अधर्म के विषय में हमारे व्यवहार और आचरणगत बातों को बहुत ही कलात्मक रुप में और मानवीय चरित्र सदृश प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत है - अधर्म/बुराई कैसे और किस रुप में जन्म लेती है।
अधर्म वंश क्रम
ब्रह्मा का बेटा अधर्म, अर्थात सृष्टि के साथ ही अच्छाई और बुराई आयी है।
अधर्म की पत्नी मृषा (झूठ)। अर्थात अधर्म और झूठ एक दूसरे के पर्याय हैं।
इन से दंभ और माया ( धोखाधड़ी) पैदा हुए जिन्हें र्निऋति ( कल्याणविहीन/रीतिविहीनता/मार्गरहित/स्पर्धविहीनता) ले गयी।
दंभ और माया से लोभ और निकृति (शठता/ धूर्तता) पैदा हुए।
लोभ और निकृति से क्रोध और हिंसा।
क्रोध और हिंसा से कलि ( कलह) और दुरुक्ति (गाली) जन्मे।
कलह और गाली से मृत्यु-भय आए।
भय और मृत्यु से यातना और निरय ( नरक) पैदा हुए। यह सब ही प्रलय अर्थात नाश का कारण स्वरुप हैं।
कौन सी बुराई किस दुर्गुण को जन्म देती है यही इस अधर्मवंश का भावार्थ है।
शुरु से ही बुराई को पोषक मिलता रहता है तो वह वृद्धि करके विनाश का कारण बन जाती है। यूं तो बुराई अच्छाई के साथ होती है क्योंकि बिना उसके अच्छाई भी नहीं होगी। यही तो आज का विज्ञान और मनोविज्ञान है। हर नकारात्मकता में सकारात्मकता छिपी हुई है। प्रकृति का एक नियम तोड़ने पर अधर्म की कई पीढ़ियों की दासता सहनी पड़ती है। इसलिए धर्म की व्याख्याओं का गहनार्थ ग्रहण करके जीवन में पालन करना चाहिए। ये बातें किसी रुप में भी संकीर्ण नहीं कही जा सकती है। हमे सभी धर्मों का मर्म समझना चाहिए। फिर हमें कोई धर्म पृथक नज़र नहीं आएगा।
2 comments:
ye duniya dvet(DUEL) hai.Jis prakar Raat:Din,Sukh:Dukh,Jivan:
Marittyu, Amir:Garib ityadi sab ek sath judein hain usi prakar Achchai ke sath burai bhi judi hai.
Example: Jis prakar Kamal(Lotus) kichad mein hi ugta hai tatha Gulab (Rose)Kanton mein hi khilta hai usi prakar Achchai bhi burai ke sath janam leti hai.
Sanjay Sharma.
thanks for sharing this knowledge.
-gaurav
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