Saturday 12 May, 2007

सोच कर देखो…




ट्रस्ट के संस्थापक श्री सुदीप महात्मा जी के उदगार -

आजकल बहुत सारे ट्रस्ट तथा धार्मिक संस्थाएँ सामाजिक कार्यों में लगी हुई है और समाज का कल्याण कर रही है, हो सकता है उनमें कुछ स्वार्थ के हित के लीये भी कार्यरत हों पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि सभी ट्रस्ट संस्थाएँ एक जैसी हैं। जिस तरह से हाथ की अँगुलियाँ एक समान नहीं होती है उसी तरह सभी लोग और सभी के विचार एक जैसे नहीं होते हैं।

हमने इस ट्रस्ट की स्थापना मात्र सेवाभाव के लिए ही की है ताकि वास्तव में गरीब, बेसहारा, बच्चों, बूढ़ों व सभी ज़रुरतमंदों की निस्वार्थ भाव से मदद की जा सके। इस ट्रस्ट का नाम जिन महापुरुष श्रीरामरतनमहाराजजी के नाम पर रखा गया है उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। जब वे आठ वर्ष के थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया था लेकिन उन्होंने तबभी किसी से कुछ नहीं मांगा, वह कई-कई दिनों तक भूखे रहे, मगर किसी से मदद नहीं ली। जब भारत पाकिस्तान विभाजन हुआ तब हजारों परिवारों को अपने पास सालों तक शेरपुर ( सहारनपुर) में रखा तथा एक-एक करके सभी को उनके अपने काम और दुकाने खुलवायीं। नौकरियाँ लगवायीं। अपनी किसी परेशानी में कभी कुछ नहीं माँगा। इस बात के गवाह आज भी कुछ बुजुर्ग उस गाँव में हैं जो उनके साथ रहे हैं। महाराज जी का महाप्रयाण १९६४ में हुआ लेकिन आज भी लोग उनके नाम पर चलते हैं और उनकी भलाइयों का गुणगान करते हैं। उनके नाम पर इतने स्कूल, आश्रम तथा औषधालय चल रहे हैं लेकिन उन्होंने कोई भी संपत्ति अपने नाम या अपने किसी परिवारजन के नाम पर नहीं छोड़ी। आज भी महाराजश्री के नाम से जो आश्रम चल रहे हैं उनमें कभी भी कुछ नहीं मांगा जाता कोई भी आकर कितने दिन भी ठहर जाता है।
हम उन्हीं के बनाए आदर्शों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। हमारे ट्रस्ट के पास न तो कोई संपत्ति है और न ही हम संपत्ति इकट्ठा करेंगे क्योंकि संपत्ति ही विवाद की मूल है और लालच पैदा करती है। हम लोगों द्वारा दिए गए पैसे
को शिविर या अन्य किसी सेवा के कार्य में खर्च कर देते हैं। मैं इस ट्रस्ट का संस्थापक हूँ, पर मेरे नाम पर कोई भी संपत्ति नहीं है। मैं कोई बड़ा महात्मा या संत नहीं हूँ बल्कि एक मामूली सा इंसान हूँ, लेकिन जब से घर छोड़ा है आप सब के सहयोग से ज़रुरतदों की सेवा करना चाहता हूँ। यदि हम किसी के जीवन में मुस्कान ला सकें तो यही सबसे बड़ी भक्ति है- सबसे बड़ा पुण्य है। हम अपने आपको धोखा दे सकते हैं , दूसरों को धोखा दे सकते हैं पर परमात्मा को कदापि नहीं, वह तो सब देखता है, इसलिए मेरी आप सब से विनम्र प्रार्थना है कि निस्वार्थ सेवा करना ही अपना उद्देश्य बना लीजिए। जिस दिन आप किसी के जीवन में खुशी लाएँगे आपका जीवन खुद ही आनंदमय हो जाएगा। वह खुशी और आनंद अनमोल होगा जिसकी तुलना किसी अन्य सुख से नहीं हो सकती है। धन्यवाद।